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कोलकाता हादसा व सरकारी विभाग !

वर्तमान समाज
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कोलकाता फ्लाईओवर के गिर जाने की खबर मुझे तब मिली जब मैं जिम में अभ्यास कर रहा था जैसे ही मैंने यह खबर पड़ी उसी समय मेरे मस्तिस्क की सुई 5 वर्ष पीछे गयी जब मैंने अपनी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक में एक अध्याय पढ़ा था जिसका शीर्षक था “जामुन का पेड़” इस अध्याय की कहानी हमारी सरकारी विभागों की कहानी है लेकिन थोडा बहुत कोलकाता की इस दुर्घटना से मिलती है तो उस अध्याय में मानसून के कारण जामुन का पेड़ गिर जाता है उसके निचे एक व्यक्ति दब जाता है और उसकी कमर टूट जाती है तब वह हिल नहीं पाता और कोई उस पेड़ को हटा नहीं सकता क्योंकि यह मामला सरकार का है लेकिन कुछ व्यक्ति उसे पानी पिलातें हैं  और फिर फाइल एक दफ़तर  से दुसरे दफतर के चक्कर लगाना शुरु  कर देती है  दरअसल यह मुद्दा पकड़ता है कि यह पेड़ किस के अन्दर आता  है  हॉर्टिकल्चर या फिर फ्लोरीकल्चर के अन्दर दोनों विभागों में तू तू शुरु हो जाती है फिर इसी बीच अन्य व्यक्ति उस बदनसीब को सहानुभति व सूचना देते हैं की बस तुम्हारी फाइल जल्दी ही पास हो जाएगी और तुम इस मुस्सीबत  से छूट जाओगे और इधर सरकारी अधिकारियों के बीच तनातनी चल रही होती है वो पेड़ तुम्हारे अन्दर आता है ऐसे ही 15 दिन बीत जाते हैं फिर 16  वें दिन एक व्यक्ति खुश होकर दबे हुए मनुष्य को बताने जाता है की बधाई हो तुम्हारी फाइल पास हो चुकी है लेकिन दुर्भाग्यवश उस व्यक्ति की जिंदगी की फाइल पूरी हो चुकी होती है | इस कहानी की वास्तविक सच्चाई किसी से छुपी नहीं  है  भले कोलकाता फ्लाईओवर का निर्माण एक निजी संस्था कर रही थी लेकिन लोक निर्माण विभाग व अन्य सार्वजनिक विभागों का हाल किसी से छूपा नहीं इन विभागों में इतना भ्रस्टाचार छा रखा है कि एक परियोजना से इन्जनियर इतना कम लेते हैं जितना एक सामान्य आदमी अपने पूरे जीवनभर नहीं कम सकता ,खराब निर्माण सामग्री , जरूरत के मुताबिक कम सामग्री डालकर बाकि अंदर व काले तरीके से बेचना आदि  एक सड़क हमारे देश में 15 बार बनकर भी एक बारिश के झोंके में स्वाह हो जाती है क्यों? कोलकाता फ्लाईओवर 7 वर्षों से निर्माणाधीन था तो उसका गिरना लघभग तय था आधा कम आधा बंद से कमजोर होना कोई नयी बात नहीं है  दुर्भाग्यवश  हम  जापान और जमर्नी जैसे देशों से भी  कुछ सीख  नहीं सकते क्योंकि यहाँ सब को अपने पेट भरने से मतलब होता है हमने देखा कैसे प्राकिर्तिक आपदाओं  के बाबजूद जापान ने एक वर्ष के भीतर न  केवल पुनःनिर्माण करा अपितु उस आपदा से बचने के लिए नयी तकनीक  विकसित कर उस इलाके को सुरक्षित कर  लिया और इन सबके उपर से निजी संस्था के ज़िम्मेदार अधिकारी का बेहद ही  शर्मनाक बयान कि “यह भगवान की मंजूरी थी” अभी लोग अपने परिजनों के विलाप में थे और यह शर्मनाक बयान उनके जख्मों पर नमक छिडकने का कार्य कर गया यह सही है की इस मुद्दे की जांच चल रही है और इस कंपनी के  कुछ व्यक्ति गिरफ्तार भी हुए हैं सही है इनपर कड़ी करवाई होनी चहिये और दोषियों को कठोर दंड मिलना चहिये लेकिन  सवाल ये है कि क्या ये पहला हादसा है ? जिस तरीके से हमारे सरकारी विभाग कार्य करते हैं  विश्वास कीजिये ये आखरी भी नहीं हैं !

कोलकाता फ्लाईओवर के गिर जाने की खबर मुझे तब मिली जब मैं जिम में अभ्यास कर रहा था जैसे ही मैंने यह खबर पड़ी उसी समय मेरे मस्तिस्क की सुई 5 वर्ष पीछे गयी जब मैंने अपनी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक में एक अध्याय पढ़ा था जिसका शीर्षक था “जामुन का पेड़” इस अध्याय की कहानी हमारी सरकारी विभागों की कहानी है लेकिन थोडा बहुत कोलकाता की इस दुर्घटना से मिलती है तो उस अध्याय में मानसून के कारण जामुन का पेड़ गिर जाता है उसके निचे एक व्यक्ति दब जाता है और उसकी कमर टूट जाती है तब वह हिल नहीं पाता और कोई उस पेड़ को हटा नहीं सकता क्योंकि यह मामला सरकार का है लेकिन कुछ व्यक्ति उसे पानी पिलातें हैं  और फिर फाइल एक दफ़तर  से दुसरे दफतर के चक्कर लगाना शुरु  कर देती है  दरअसल यह मुद्दा पकड़ता है कि यह पेड़ किस के अन्दर आता  है  हॉर्टिकल्चर या फिर फ्लोरीकल्चर के अन्दर दोनों विभागों में तू तू शुरु हो जाती है फिर इसी बीच अन्य व्यक्ति उस बदनसीब को सहानुभति व सूचना देते हैं की बस तुम्हारी फाइल जल्दी ही पास हो जाएगी और तुम इस मुस्सीबत  से छूट जाओगे और इधर सरकारी अधिकारियों के बीच तनातनी चल रही होती है वो पेड़ तुम्हारे अन्दर आता है ऐसे ही 15 दिन बीत जाते हैं फिर 16  वें दिन एक व्यक्ति खुश होकर दबे हुए मनुष्य को बताने जाता है की बधाई हो तुम्हारी फाइल पास हो चुकी है लेकिन दुर्भाग्यवश उस व्यक्ति की जिंदगी की फाइल पूरी हो चुकी होती है | इस कहानी की वास्तविक सच्चाई किसी से छुपी नहीं  है  भले कोलकाता फ्लाईओवर का निर्माण एक निजी संस्था कर रही थी लेकिन लोक निर्माण विभाग व अन्य सार्वजनिक विभागों का हाल किसी से छूपा नहीं इन विभागों में इतना भ्रस्टाचार छा रखा है कि एक परियोजना से इन्जनियर इतना कम लेते हैं जितना एक सामान्य आदमी अपने पूरे जीवनभर नहीं कम सकता ,खराब निर्माण सामग्री , जरूरत के मुताबिक कम सामग्री डालकर बाकि अंदर व काले तरीके से बेचना आदि  एक सड़क हमारे देश में 15 बार बनकर भी एक बारिश के झोंके में स्वाह हो जाती है क्यों? कोलकाता फ्लाईओवर 7 वर्षों से निर्माणाधीन था तो उसका गिरना लघभग तय था आधा कम आधा बंद से कमजोर होना कोई नयी बात नहीं है  दुर्भाग्यवश  हम  जापान और जमर्नी जैसे देशों से भी  कुछ सीख  नहीं सकते क्योंकि यहाँ सब को अपने पेट भरने से मतलब होता है हमने देखा कैसे प्राकिर्तिक आपदाओं  के बाबजूद जापान ने एक वर्ष के भीतर न  केवल पुनःनिर्माण करा अपितु उस आपदा से बचने के लिए नयी तकनीक  विकसित कर उस इलाके को सुरक्षित कर  लिया और इन सबके उपर से निजी संस्था के ज़िम्मेदार अधिकारी का बेहद ही  शर्मनाक बयान कि “यह भगवान की मंजूरी थी” अभी लोग अपने परिजनों के विलाप में थे और यह शर्मनाक बयान उनके जख्मों पर नमक छिडकने का कार्य कर गया यह सही है की इस मुद्दे की जांच चल रही है और इस कंपनी के  कुछ व्यक्ति गिरफ्तार भी हुए हैं सही है इनपर कड़ी करवाई होनी चहिये और दोषियों को कठोर दंड मिलना चहिये लेकिन  सवाल ये है कि क्या ये पहला हादसा है ? जिस तरीके से हमारे सरकारी विभाग कार्य करते हैं  विश्वास कीजिये ये आखरी भी नहीं हैं !

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